मौसी के घर रवाना हुए जगन्नाथ जी: रथ यात्रा 2025 में गूंजे जयकारे, जानिए कौन-कौन सी होंगी दिव्य रस्में
जगन्नाथ रथ यात्रा, भारत के सबसे भव्य और प्राचीन धार्मिक उत्सवों में से एक है, जो उड़ीसा के पुरी में प्रतिवर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को आयोजित की जाती है।
Img Banner
profile
Richa Gupta
Created AT: 8 hours ago
41
0
...

जगन्नाथ रथ यात्रा, भारत के सबसे भव्य और प्राचीन धार्मिक उत्सवों में से एक है, जो उड़ीसा के पुरी में प्रतिवर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को आयोजित की जाती है। वर्ष 2025 में यह पवित्र उत्सव 27 जून, शुक्रवार को मनाया जा रहा है। यह उत्सव भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को समर्पित है। इस दिन जगत के नाथ और उनकी बहन सुभद्रा व बड़े भाई बलराम अपने-अपने रथों पर सवार होकर अपनी मौसी के यहां यानी गुंडीचा मंदिर की ओर प्रस्थान करेंगे। इस दौरान लाखों की संख्या में भक्त प्रभु की एक झलक पाने को इस यात्रा में शामिल होंगे।


कितने बजे होगी मंगल आरती?

दिन की शुरुआत जगन्नाथ मंदिर में प्रातःकालीन मंगल आरती से होती है। यह 27 जून को सुबह 4 बजे (अनुमानित) होगी। इस दौरान सेवक भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को मंगल अलति, अभकाश (स्नान और वस्त्र धारण), और खेचेदी भोग (प्रसाद अर्पण) जैसे दैनिक अनुष्ठानों के साथ तैयार करेंगे। ये अनुष्ठान मंदिर के गर्भगृह में किए जाएंगे।


पहंडी बिजे

पहांडी बजे रथ यात्रा का सबसे भावनात्मक और भव्य अनुष्ठान है। यह सुबह सुबह 7:00 बजे से 9:00 बजे (अनुमानित) के बीच होगा। इस दौरान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा और सुदर्शन चक्र की मूर्तियों को मंदिर के गर्भगृह से बाहर लाया जाता है। दैतापति इन मूर्तियों को कंधों पर उठाकर रथों तक ले जाते हैं। इसमें भजन, शंखनाद, और नृत्य होता है। इसमें पहले सुदर्शन चक्र, फिर बलभद्र, सुभद्रा और अंत में भगवान जगन्नाथ की मूर्ति होती है।


छेरा पहांड़ा

पहांडी बजे के बाद, सुबह 9:30 बजे से 10:30 बजे (अनुमानित) तक छेरा पहांड़ा होगा। इसमें पुरी के गजपति राजा या उनके प्रतिनिधि रथों की सफाई करते हैं। राजा स्वर्ण झाड़ू (सोने की झाड़ू) से रथों की मंच को साफ करते हैं और सुगंधित जल छिड़कते हैं। इसके बाद, वे रथों पर भगवान को प्रणाम करते हैं।


रथ खींचने की शुरुआत

इस अनुष्ठान को दोपहर दोपहर 12:00 बजे (अनुमानित) से शुरू किया जाएगा। इसमें तीनों रथों को मंदिर से लगभग 3 किलोमीटर दूर गुंडीचा मंदिर तक ले जाया जाता है। इसमें नंदीघोष पर भगवान जगन्नाथ सवार होते हैं। यह रथ 16 पहियों वाला, 44.2 फीट ऊंचा, पीले और लाल कपड़े से सजा हुआ होता है। तलध्वज पर बलभद्र सवार रहते हैं, यह 14 पहियों वाला, हरे और लाल कपड़े से सजा हुआ रथ होता है। देवदलन यह देवी सुभद्र का रथ होता है, यह 12 पहियों वाला, काले और लाल कपड़े से सजा हुआ होता है।


भक्त मोटी रस्सियों से रथों को खींचते हैं, जिसमें लाखों लोग भाग लेते हैं। इस दौरान ‘जय जगन्नाथ’ और ‘हरे कृष्ण हरे राम’ से पूरा वातावरण पवित्र हो जाता है। रथों को बैदा दंडा (ग्रैंड रोड) के रास्ते गुंडीचा मंदिर तक ले जाया जाता है। माना जाता है कि रथ खींचने या उसका स्पर्श करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।


गुंडीचा मंदिर में प्रवेश

शाम के समय लगभग 5 बजे (अनुमानित) रथों के गुंडीचा मंदिर पहुंचने पर, मूर्तियों को रथों से उतारकर मंदिर के सिंहासन पर स्थापित किया जाता है। यह प्रक्रिया भी पहांडी की तरह भव्य होती है, जिसमें पुजारी और दैतापति विशेष भूमिका निभाते हैं। मंदिर में भगवान की विशेष पूजा और आरती की जाती है। एक कथा के अनुसार देवी सुभद्रा ने अपनी मौसी से मिलने की इच्छा व्यक्त की थी, जिसके लिए भगवान जगन्नाथ और बलभद्र उनके साथ गुंडीचा मंदिर की यात्रा पर निकले थे। यह यात्रा भगवान के भक्तों के बीच आने और उन्हें आशीर्वाद देने का भी एक सरल माध्यम बनी।

ये भी पढ़ें
सीएम की घोषणा,कटंगी और पौड़ी बनेगी तहसील,लाड़ली बहना योजना सम्मेलन में शामिल हुए सीएम
...

Spiritual

See all →
Richa Gupta
मौसी के घर रवाना हुए जगन्नाथ जी: रथ यात्रा 2025 में गूंजे जयकारे, जानिए कौन-कौन सी होंगी दिव्य रस्में
जगन्नाथ रथ यात्रा, भारत के सबसे भव्य और प्राचीन धार्मिक उत्सवों में से एक है, जो उड़ीसा के पुरी में प्रतिवर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को आयोजित की जाती है।
41 views • 8 hours ago
Richa Gupta
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि है खास, नगर भ्रमण पर निकलते हैं भगवान जगन्नाथ
आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर भगवान जगन्नाथ रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण करते हैं। जानिए रथ यात्रा का महत्व और धार्मिक परंपरा।
63 views • 2025-06-26
Sanjay Purohit
नारायणी नमोस्तुते: शक्ति, समाज और चेतना का आंतरिक संगम
"नारायणी नमोस्तुते" — यह उद्घोष न केवल श्रद्धा का प्रकटन है, बल्कि यह चेतना की एक चिंगारी, सांस्कृतिक चेतावनी और मनोवैज्ञानिक संतुलन का मार्गदर्शन भी है। यह कोई साधारण स्तुति नहीं, बल्कि उस दिव्यता का स्मरण है, जो सृजन, संरक्षण और संहार — तीनों शक्तियों को समाहित करती है।
7 views • 2025-06-26
Sanjay Purohit
आषाढ़ गुप्त नवरात्रि: शक्ति, तंत्र और मौन साधना का महापर्व
जब आषाढ़ मास की अमावस्या का अंधकार धरती पर उतरता है, और वर्षा की पहली बूंदें वायुमंडल को तपश्चरण की गंध से भर देती हैं — तभी प्रकृति के गर्भ में एक रहस्यमयी पर्व जन्म लेता है: आषाढ़ गुप्त नवरात्रि। यह पर्व उतना ही रहस्यमय है जितना कि उसका नाम। यह वह क्षण होता है जब देवी दुर्गा की शक्तियाँ अपने गुप्त रूपों में प्रकट होती हैं — तांत्रिक ऊर्जा के उस सूक्ष्म लोक से, जिसे केवल साधना की दीप्ति में देखा जा सकता है।
19 views • 2025-06-25
Sanjay Purohit
मन: बंधन से मुक्ति की यात्रा
आध्यात्मिक दृष्टि से मन वह माध्यम है, जिसके द्वारा आत्मा संसार से संबंध स्थापित करती है। यह न तो पूर्णतः शरीर है, न ही पूर्णतः आत्मा—बल्कि इन दोनों के बीच की एक सूक्ष्म सत्ता है। मन ही वह उपकरण है जो आत्मा को संसारिक अनुभव देता है। जब मन शांत और शुद्ध होता है, तब आत्मा अपनी दिव्यता को प्रकट कर सकती है।
201 views • 2025-06-23
Sanjay Purohit
चार धाम यात्रा करने से लोगों को क्या फल मिलता है ?
हिंदू धर्म में चार धाम यात्रा अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण मानी जाती है. यह सिर्फ एक यात्रा नहीं, बल्कि एक गहरा आध्यात्मिक अनुभव है जो भक्तों के जीवन में बदलाव लाता है. भारत में मुख्य रूप से दो प्रकार की चार धाम यात्राएं प्रचलित हैं, और दोनों का ही अपना अलग महत्व है.
197 views • 2025-06-23
Sanjay Purohit
ब्रह्मांड की सबसे शक्तिशाली देवी: माँ पीतांबरा
माँ पीतांबरा को ब्रह्मांड की सबसे रहस्यमयी, शक्तिशाली और तांत्रिक महाशक्ति के रूप में जाना जाता है। वे दस महाविद्याओं में एक विशिष्ट स्थान रखती हैं। पीले वस्त्रों में लिपटी हुई, रौद्र और सौम्य दोनों रूपों की धारक यह देवी साधकों को अपार शक्ति, तेज और सिद्धियाँ प्रदान करती हैं। उनका स्वरूप परा-विद्याओं, आत्म-ज्ञान और तेजस्विता का प्रतीक है।
33 views • 2025-06-23
Durgesh Vishwakarma
मां कामाख्या मंदिर के कपाट आज से तीन दिनों के लिए बंद
अंबुवासी महायोग असम में एक प्रमुख धार्मिक आयोजन है, जो हर साल जून माह में होता है। इसे विशेष रूप से कामाख्या देवी की पूजा और शक्ति के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
73 views • 2025-06-22
Sanjay Purohit
कामाख्या पीठ और कोलाचार: तंत्र साधना की रहस्यमयी भूमि
भारत की धार्मिक और आध्यात्मिक परंपरा में अनेक शक्तिपीठ ऐसे हैं, जो न केवल भक्ति के केंद्र हैं, बल्कि गूढ़ तांत्रिक साधनाओं के रहस्य भी समेटे हुए हैं। कामाख्या शक्तिपीठ और उससे जुड़ा कोलाचार इन्हीं में से एक है — जहाँ शक्ति, साधना और रहस्य एक साथ मिलते हैं।
230 views • 2025-06-21
Sanjay Purohit
आषाढ़ गुप्त नवरात्रि 2025: तंत्र साधना और आत्मशक्ति का पर्व
भारत की सांस्कृतिक परंपराओं में नवरात्रि का विशेष स्थान है। वैसे तो लोग चैत्र और शारदीय नवरात्रि से अधिक परिचित होते हैं, लेकिन गुप्त नवरात्रि—विशेषकर आषाढ़ और माघ मास में आने वाली—तांत्रिक साधना, आत्मबल, और आंतरिक सिद्धियों की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।
82 views • 2025-06-20
...